फौलादी सीना था इस वीर सिपाही का जो 15 गोलियों के बाद भी दुश्मनो से लड़ता रहा, और फ़तेह करके लौटा

आपने कई बार कारगिल युद्ध की शौर्य भरी कहनियां तो ज़रूर सुनी होगी। और कई ऐसे वीर सिपाही की शौर्य गाथा भी ज़रूरी सुनी या पढ़ी होगी ,जिसमें उन वीर सिपाही के कारगिल फतेह करते वक़्त शहादद हो गयी। या फिर वो घायल हो गए। आज एक शौर्यगाथा दोहराते है उस वीर सिपाही योगेंद्र सिंह यादव की। जिसने मात्र 16 साल की उम्र में अपनी जवानी भारत माँ की सेवा के लिए अर्पण कर दी थी। और 19 साल की उम्र में परम वीर चक्र से नवाज़ा गया। फौलाद का सीना लेकर पैदा हुए थे योगेंद्र सिंह। जिन्होंने दुशमन की 15 गोलियां लगातार खाने के बाद भी घुटने नहीं टेके। और उन पर विजय भी हासिल की।

योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 में उत्तर प्रदेश में ओरंगाबाद में हुआ था।
योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 में उत्तर प्रदेश में ओरंगाबाद में हुआ था।

उत्तर प्रदेश में जन्मा है ये वीर सिपाही

योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 में उत्तर प्रदेश में ओरंगाबाद में हुआ था। और उनके पिता करण सिंह जी पहले से ही सेना में थे। और उन्होंने भी साल 1965 से 1971 के मध्य हुए भारत पाकिस्तान के भयंकर युद्ध में दुश्मनो को पछाड़ा था। और योगेंद्र भी पिता जी के ही बहादुरी के किस्से सुनकर बड़े हुए थे। और वहीँ से देश सेवा का जस्बा पनपा। और योगेंद्र सिंह महज़ 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती हो गए।

जब 1996 में योगेंद्र ने आर्मी ज्वाइन की थी
जब 1996 में योगेंद्र ने आर्मी ज्वाइन की थी

कारगिल युद्ध के दौरान दिखाया शौर्य प्रदर्शन

जब 1996 में योगेंद्र ने आर्मी ज्वाइन की थी, तो उसके कुछ वक़्त बाद ही कारगिल युद्ध छीढ गया था। और पाकिस्तानी सेना 1947, 1965 और 1971 में लगातार हारने के बाद भी नहीं मान रही थी। और उन्होंने भारत की सेना पर हमला कर दिया था। जिसके बाद कई भारतीय जवानो को कारगिल सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गयी। और उसी में से एक थे योगेंद्र सिंह यादव। जिन्हे टाइगर हिल की 3 बंकरो की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी।

जब युद्ध बारी के बाद योगेंद्र का दुश्मनो से सीधा सामना हुआ तो, उन्होंने कुछ साथयो के साथ दुशमन का सामना भी किया
जब युद्ध बारी के बाद योगेंद्र का दुश्मनो से सीधा सामना हुआ तो, उन्होंने कुछ साथयो के साथ दुशमन का सामना भी किया

दुश्मन को किया परास्त

4 जुलाई 1999 को जब पाकिस्तानी सेना हमले की पूरी तैयारी में थी। और योगेंद्र सिंह यादव को ऊँची पहाड़ी पर दुश्मन के किले पर फतेह करनी थी। लेकिन ऊंचाई अधिक थी। और उन्हें करीब 90 डिग्री की ऊंचाई पर चढाई करनी थी। उसके लिए योजना बनानी बहुत ज़रूरी थी। इसलिये उन्होंने अपने कमांडो समूह ”घातक” के साथ आगे बढ़ रहे थे। और लगातार 5 घंटो तक गोलाबारी हमला भी संभाला। कुछ सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए लेकिन नहीं रुके।

जब युद्ध बारी के बाद योगेंद्र का दुश्मनो से सीधा सामना हुआ तो,
जब युद्ध बारी के बाद योगेंद्र का दुश्मनो से सीधा सामना हुआ तो

15 गोली खायी लेकिन टिके रहे

जब युद्ध बारी के बाद योगेंद्र का दुश्मनो से सीधा सामना हुआ तो, उन्होंने कुछ साथयो के साथ दुशमन का सामना भी किया। लेकिन उनके सभी दोस्त शहीद हो गए। लेकिन योगेंद्र सिंह टिके रहे। उनको लगातार 15 गोली दुश्मन उनके सीने में मारी। लेकिन वो तब भी ज़िंदा रहे और दुश्मन के सामने मौत का नाटक करने लगे। और दुश्मनो को धोखे में रखकर उन्हें ग्रेनाइट से उडा दिया। और मिशन विजय हुआ।

योगेंद्र ने दुश्मनो को धोखे में रखकर उन्हें ग्रेनाइट से उडा दिया। और मिशन विजय हुआ।
योगेंद्र ने दुश्मनो को धोखे में रखकर उन्हें ग्रेनाइट से उडा दिया। और मिशन विजय हुआ।

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