एक मास्टर ऐसे भी! एक पैर पर रोज लाठी के सहारे निकलते है, साइकिल पर, 20 किलोमीटर चलकर जाते है इन गरीब बच्चो को पढ़ाने

दुनिया में ऐसे कई शिक्षक होते है, जो कि अपने पेशे को पेशे से कहीं हद आगे मानते है, और सिर्फ सेवा करने में ही ध्यान देते है। और शायद इन्ही कारणों की वजह से वे सबसे अलग होते है। और ये सही भी है, क्योकि ऐसे बहुत से शिक्षक होते है, जो इसे एक सेवा स्वरुप समझते हुए कार्य करते है। और ये कोई गलत भी नहीं है। आज हम एक ऐसे शिक्षक की ही बात करने जा रहे है। जो कि खुद एक पैर से कमज़ोर है, लेकिन उनका होंसला किसी मजबूती से कम नहीं है। और आज की कहानी वाकई में ही खास है , क्योकि हम जिस शिक्षक का उदाहरण लेकर आये है, उन्होंने अपने शैक्षिक करियर में बहुत से गरीब बच्चो को अब तक पढ़ाया है। और उनका भला किया है। इन शिक्षक का नाम है , मिलन मिश्रा। जो कि रोज अपंनी साइकिल पर लाठी के सहारे क लगभग 20 किलोमीटर चलकर जाते है। और एक जगह पर जाकर गरीब बच्चो को पढ़ाते है। मिलन मिश्रा जी भले ही एक पैर से कमज़ोर है, लेकिन वो अपने इरादे से मजबूत है।

उत्तर प्रदेश से है मिलान मिश्रा
उत्तर प्रदेश से है मिलान मिश्रा

उत्तर प्रदेश से है मिलान मिश्रा

बता दे कि, मिलान मिश्रा जी उत्तर प्रदेश के सीतापुर से है। और उनका खुद का शुरूआती जीवन भी गरीबी मे ही बीता है। जिसके कारण उन्होंने स्वयं भी मुश्किलें देखी है। उनेक पास किराए के लिए भी पैसे नहीं थे। जिसकी वजह से वे रोज बहुत मुश्किल से एक ही पैर पर चलकर जाते थे। और किसी तरह से अपनी पढ़ाई पूरी की है।

20 किलोमीटर जाते है लाठी के सहारे साइकिल से
20 किलोमीटर जाते है लाठी के सहारे साइकिल से

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20 किलोमीटर जाते है लाठी के सहारे साइकिल से

मिलन मिश्रा जी खुद को विकलांग नहीं मानते है। और वे कहते है, कि इससे मेरी आत्मा को चोट पहुंचेगी। और वे प्रतिदिन 20 किलोमीटर सिर्फ लाठी के सहारे साइकिल से जाते है, और वे इतनी दूर सिर्फ बच्चो को पढ़ाने के लिए जाते है।

मिलन मिश्रा जी खुद को विकलांग नहीं मानते है।
मिलन मिश्रा जी खुद को विकलांग नहीं मानते है।

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