मिलिए इस करोड़पति फ़कीर से,लाखो गरीब बेटियों की पढ़ाई लिए हर साल दान करते है, 50लाख रु०,दिल से नमन है घासीराम जी कोअमेरिका से मिलती है पेंशन

कहते है , कि अगर इस दुनिया में धोखेबाजी करने वाले है। तो कुछ इसी दुनिया में ऐसी जब भी है, जो भलाई करना अपना सबसे पहला धर्म भी मानते है। और कुछ लोग दानी भी होते है। और बहुत से लोगो का दिल इतना बड़ा होता है कि, उनके पास जो भी होता है, वे उसे भी दान देते है। और दुवाएं कमाने का काम करते है ,. ये वही लोग होते है। जिन्हे हम एक सही भाषा में समाज सेवी कहते है। और एक सच्चा निस्वार्थ सेवक मानते है। और और आज हम जिस शख्स के बारे में बात करने वाले है। वो वाकई ही में अपने आप में ही बहुत महत्व रखते है ,औरउनकी एक अलग ही पहचान हमारे दिल में होती है। और आज की कहानी आधारित है राजस्थान की गोड में जन्मे डॉ घासीराम वर्मा जी पर। जिन्होंने अमेरिका जैसे देश में पहले गणितग्य होने का पद प्राप्त किया है। उनसे पहले किसी भी भारतीय शिक्षक ने बाहर देश में ऐसे गणित नहीं पढाया है। और एक अलग ही सम्मान और गौरव किया है। और सबसे खास बात तो ये है कि, घासीराम वर्मा जी आज 95 साल के हो चुके है। और इस उम्र में भी वे अपनी अमेरिका में मिलने वाली पेंशन एक कुछ हिस्सा गरीब बेटियों की पढ़ाई के लिए दान कर देते है।

राजस्थान में जनमे है घासीराम वर्मा
राजस्थान में जनमे है घासीराम वर्मा

राजस्थान में जनमे है घासीराम वर्मा

बता दे, कि घासीराम वर्मा जी का जन्म मूलत: झुंझुनू के गांव सीगड़ी में एक अगस्त 1927 को चौधरी लादूराम तेतरवाल और जीवणी देवी के घर में हुआ था। घासीराम जी शुरू से ही पढ़ाई मे बहुत अच्छे थे। और उन्हें शुरू से ही गणित जैसे विषय में भी बहुत दिलचस्पी थी। और आज वो न सिर्फ लाखो बच्चो एक लिए प्रेरणा है। बल्की वे कई गरीब बेटियों की पढ़ाई का भी खर्च उठाते है। और वे हर साल अपनी पेंशन से 50 लाख रुपए दान में देते है।

घासीराम वर्मा जी आज भले ही 95 साल के हो गए हो। लेकिन उम्र के इस पड़ाव तक भी वे भलाई करना ही बहुत है।
घासीराम वर्मा जी आज भले ही 95 साल के हो गए हो। लेकिन उम्र के इस पड़ाव तक भी वे भलाई करना ही बहुत है।

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शुरुआती जीवन रहा है कठिन

घासीराम वर्मा जी आज भले ही 95 साल के हो गए हो। लेकिन उम्र के इस पड़ाव तक भी वे भलाई करना नही बहुत है। और वे इस देश का गौरव है। और वे शायद पहले ऐसे शिक्षक है, जिन्हे अमेरिका से पेंशन मिलती है। अपने शुरुआती दिनों में उन्होंने बहुत संघर्ष किया है। उनके क्षेत्र में स्कूल न जाने के कारण उन्हें दूर चलकर जाना पड़ता था। और आज उनकी ये संघर्ष रंग लाते दिख रहे है।

घासीराम वर्मा इस उम्र में भी वे अपनी अमेरिका में मिलने वाली पेंशन एक कुछ हिस्सा गरीब बेटियों की पढ़ाई के लिए दान कर देते है।
घासीराम वर्मा इस उम्र में भी वे अपनी अमेरिका में मिलने वाली पेंशन एक कुछ हिस्सा गरीब बेटियों की पढ़ाई के लिए दान कर देते है।

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