सारी उम्र बच्चो के लिए कमाया इन हाथो ने, और उसी औलाद ने छोड़ दिया बेसहारा, 80 साल की उम्र में कांपते हुए हाथो से परांठा बनाकर बेचते है….

माता- पिता भगवान का वरदान होते हैं। जिनके रहने के बाद कभी भी ,हम पर कोई भी मुसीबत नहीं आ सकती। जब तक माता-पिता साथ है तब तक कोई भी बच्चा अपने आप को बहुत ही सुरक्षित महसूस करता है। माता-पिता के जैसे प्यार कोई भी नहीं कर सकता। जितना प्यार कोई मां बाप अपने बच्चे से करता है ,जितना ध्यान वह अपने बच्चे का रखता है, उतना ध्यान इस दुनिया में कोई भी किसी का नहीं रख सकता। जिस तरह से वह हमसे बिना किसी उम्मीद के हमें पालते हैं ,हमें बड़ा करते हैं, पढ़ाते हैं, लेकिन कभी भी हमसे कुछ भी उम्मीद नहीं रखते हैं। ऐसा अनूठा रिश्ता तो सिर्फ एक बच्चे का और उसका उसके माता-पिता के साथ ही हो सकता है । लेकिन आज के समय में जहां ,मां बाप इतना कुछ करते हैं , वो बच्चे ही अपने मां-बाप को छोड़ देते हैं । और आज ऐसी ही एक दुख भरी कहानी उपाध्याय झा आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

इस उम्र में भी जीविका के लिए पटना में स्टेशन रोड पर ,चिरैया तार पुल के नीचे, पीलर नम्बर 28 और 29 के बीच ,सत्तू पराठा बनाकर बेचते हैं।
इस उम्र में भी जीविका के लिए पटना में स्टेशन रोड पर ,चिरैया तार पुल के नीचे, पीलर नम्बर 28 और 29 के बीच ,सत्तू पराठा बनाकर बेचते हैं।

मां-बाप किसी भी परिवार का सुरक्षा कवच होता है जिनके रहते कभी भी परिवार पर कोई भी संकट नहीं आ सकता। उनसे ज्यादा अनुभवी और उनसे ज्यादा प्यार करने वाला भी कोई नहीं हो सकता ।शायद इस चीज को आजकल की जो युवा है, वो भूल चुके हैं, अपनी जिंदगी में इतनी डूब चुके हैं ,खो चुके हैं कि अपने माता-पिता का कदर करना ही भूल गए हैं। वो भूल गए हैं कि कभी उन्होंने ही उनको, चलना, पढ़ना लिखना, सिखाया था। आज वह जिस पदवी पर है, वो उनके माता-पिता के कारण ही है।

बूढ़े मां बाप की दुख भरी कहानी (उपाध्याय झा)

जिस मां-बाप की बात हम आपसे कर रहे थे उनका नाम है, उपाध्याय झा , जिनकी उम्र 80 वर्ष है। आज वे इस उम्र में भी जीविका के लिए पटना में स्टेशन रोड पर ,चिरैया तार पुल के नीचे, पीलर नम्बर 28 और 29 के बीच ,सत्तू पराठा बनाकर बेचते हैं। वे उपाध्याय झा पराठा बेच कर अपना गुजारा कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि, उनके बच्चे नहीं है ,उनके बच्चे हैं। लेकिन वह बिहार से बाहर रहते हैं और अपने मां बाप से कभी-कभार मिलने आते हैं। उनकी ऐसी दर-दर हालत को देखकर ,मन तो रोने को हो जाता है ।लेकिन ऐसा भी आजकल देखने को मिलता है।

उपाध्याय झा पराठा बेच कर अपना गुजारा कर रहे हैं।
उपाध्याय झा पराठा बेच कर अपना गुजारा कर रहे हैं।

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बच्चे रहते है बाहर

ऐसे मां बाप के लिए बच्चे होने का क्या ही फायदा ,जो बूढ़े होने पर उनका सहारा ना बन सके ।सच में यह दोनों पति-पत्नी ही अभी एक दूसरे का सहारा है। ना तो इनके पास इनके बच्चे हैं, ना हीं पोते – पोतियां। जहां इनको इस उम्र में अपने पोते -पोतियां के साथ खेलना चाहिए था। और इनके बेटे बेटियों और ,इनके बहू को इनकी सेवा करनी चाहिए थी ।और इनको आराम देना चाहिए था, वह अभी इस बात से बेफिक्र होकर अपनी जिंदगी जी रहे हैं। और अपने मां-बाप को दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया है। आज के इस बदलते जमाने में हमने सोचा भी नहीं था, कि लोग अपने ही मां-बाप को इस तरीके से भूल जाएंगे। लेकिन यहाँ हमे ये नहीं भूलना चाहिए, कि हर माता पिता पूजनीय है, और आदरणीय है।

 हर माता पिता पूजनीय है, और आदरणीय है।
हर माता पिता पूजनीय है, और आदरणीय है।

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