भागवत गीता के रहस्य जिनके बारे में जानना जरूरी है

भागवत गीता भारत का सर्वथा प्रचलित ग्रन्थ हे गीता सरल ज्ञान और छोटा सा ग्रन्थ हे जिसमे ज्ञान का इस प्रकार का निचोड़ हे कि जीवन के सारे पहलुओं के बारे में उच्च स्तर की जीवन पद्धति के बारे में इसमें बतलाया गया है।

यह पवित्र ग्रन्थ तब वजूद में आया जब युद्ध भूमि में अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें भ्रमजाल से निकल कर सांसारिक माया मोह को त्यागकर निष्काम भाव से कर्मयोग के लिए प्रेरित किया इसी ज्ञान का संचय से भगवतगीता जैसा महानतम ग्रन्थ अस्तित्व में आया है।

गीता में जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र दिए गए हैं जिसे जीवन में अगर कोई पालन करे तो उसका जीवन परिवर्तन होना तय हे जिसके फलस्वरुप उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा भरपूर बढ़ जाती है।

भागवत गीता की ये रहस्मयी बाते और उपदेश जरूर पढ़े

जीवन की दशा और दिशा बदलने के लिए कई सारे महापुरुषों के जीवन में गीता क्रांतिकारी परिवर्तन लेकर आयी।

गीता के प्रमुख सिद्धांतो में से एक हे कि जो हुआ अच्छा ही हुआ और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा खुश रहने का और व्यर्थ की चिंता कम करने के लिए एक जीवन मंत्र है।

भागवत गीता की रहस्मयी बाते
भागवत गीता की रहस्मयी बाते

परिवर्तन ही संसार का नियम

हमेशा किसी की भी परिस्थितियां एक जैसी नहीं रहती हर व्यक्ति का समय अगर अभी खराब या सही चल रहा हे तो जरूरी नहीं कि यथा स्थिति बनी रहे इसलिए कर्म को प्रधानता गया है।

ध्यान

ध्यान का बहुत महत्व दिया गया हे इससे मन को एकाग्र किया जाने का विधान दिया गया हे जिससे अपने बारे में खुद के अनुभव से जाना जा सकता हे और आत्मा से परमात्मा की प्राप्ति एव पारलौकिक ज्ञान को उजागर करता हे

अकेले आये थे और अकेले ही चले जाना हे

जीवन में धन संग्रहण ही एक मात्र उद्देश्य बनाने वाले लोगों को सीख दी गई हे कि धन का इस्तेमाल आत्मोन्नति के लिए किया जाना चाहिए बजाय संगृहीत करने में ही जीवन गुजार देने के उच्च जीवन स्तर के बारे में बतलाया गया है।

भागवत गीता के रहस्य
भागवत गीता के रहस्य

कर्म करो फल की चिंता मत करो

गीता की शिक्षाएं कर्म प्रधान हैं इसमें कहा गया हे कि मनुष्य को सदैव उत्तम कर्म पर ध्यान देना चाहिए अगर कर्म अच्छे होंगे तो उसका फायदा तुरंत ना भी मिले तो दूरगामी परिणाम अच्छे होते हैं और वर्तमान में जो बीज बोया हे उसका फल मिलने में समय लगेगा लेकिन फल जरूर मिलेगा।

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आत्मा अजन्मी हे अविनाशी हे

शरीर का अति कायाकल्प यानी ज्यादा सजना संवरना ठीक नहीं क्योंकि यह शरीर नाशवान हे लेकिन मृत्यु का भी अधिक भय नहीं करना चाहिए क्योंकि शरीर नाशवान हे पर आत्मा अजर अमर हे जिसे ना कोई कैद कर सकता हे और ना ही समाप्त इसलिए मानव व्यर्थ की चिंता करता है।

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