भगवान कृष्णा ने बताए थे अर्जुन को रिश्ते बिगड़ने के ये कारण

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को बताया रिश्ते बिगड़ने के कारण जिनका मानव जीवन में गहरा प्रभाव होता हे रिश्तो के धागों को कैसे सुलझाकर रखा जाय और अचानक से रिश्ते कमजोर क्यों हो जाते हैं यह सभी बाते बतलाई गई है।

रिश्ते बिगड़ने के कारण जिनकी वजह नजदीकियां दूरियों में कैसे बदल जाती है

कलयुग में रिश्तों का यदि कोई मोल नहीं समझ रहा तो उसे रिश्तों में दरार आने के प्रति आभास भी नहीं होता और अचानक ही अनहोनी हो जाती हे बहुत से कमजोर रिश्ते कच्चे धागे की तरह टूट जाते हैं और इनमे दरार से सारी सुख शान्ति भांग होजाती हे रिश्तों की एक मर्यादा होती हे जिसका पालन करना प्रत्येक मनुष्य का प्राथमिक कर्तव्य है।

स्वयं पर किसी को हावी मत होने दें

रिश्ते प्रेम और विश्वास से चलते हैं जिसमे प्रेम के बदले बाकी किसी भी चीज की आस नहीं की जाती बस प्रेम देने की चीज हे जिसके बदले में कुछ पाने की इच्छा भी नहीं की जाती परन्तु जब हम प्रेम के बदले किसी पर हावी होने की कोशिस करते हैं तो वो व्यक्ति परेशान हो जाता हे और रिश्ता सफल नहीं हो पाता।

स्वतन्त्रता

स्वतन्त्रता - रिश्ते बिगड़ने के कारण
स्वतन्त्रता – रिश्ते बिगड़ने के कारण

मानव के मूल स्वभाव में स्वतन्त्रता का भाव हे मानव खुद स्वतंत्र रहना चाहता हे लेकिन दूसरों पर अपना प्रभुत्व जमाकर उससे मनमर्जी के कार्य करवाने की अच्छा विचारों से टली नहीं हे यही भाव उसे दूसरों को अपना गुलाम बनाने की भावना से प्रति आकर्षित कराता हे जिससे रिश्तों में दरार आ जाती है।

भगवान् श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि जिस रिश्ते में आपको यह दिखता हे कि आपके आदरणीय जन अपने आपके धर्म कर्म के बीच रोड़ा बन चुके हैं और आप धर्मसंकट की स्थति में फंस गए हैं तो ऐसी परिस्थिति में आपको धर्मशास्त्रानुसार निर्णय लेना चाहिए चाहे फिर अपने सगे सम्बन्धियों के विरुद्ध ही ना उतरना पड़े।

धर्मानुसार निर्णय

धर्मानुसार निर्णय - रिश्ते बिगड़ने का कारण
धर्मानुसार निर्णय – रिश्ते बिगड़ने का कारण

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अगर रिश्तों में अति लोभ के कारण साझेदार संपत्ति का बँटवारा सही ना कर उसे खुद को ही लाभ के उद्देश्य से कार्य करे तो यहाँ भी रिश्ते कच्चे धागे की तरह होते हैं जो अनसुलझे होते हैं इनमे फंसना उचित नहीं हे और ऐसे रिश्ते एक ना एक दिन बिगड़ ही जाते हैं अतः इस प्रकार की स्थति में भी धर्मानुसार ही कार्य करना उचित है।

अगर मनुष्य रिश्तों के प्रभाव में आकर सत्य और असत्य में अंतर भुलाकर केवल अपने सम्बन्धियों की बातों के प्रभाव में आकर निर्णय ले तो ऐसा व्यक्ति नपुंसक के जैसा होता हे जिसकी निर्णय क्षमता की बागडोर किसी अन्य व्यक्ति के हाथों में है।

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